मज़दूर* ( बाल कविता )
नीरजा मेहता,सेवानिवृत्त शिक्षिका
कंकड़ पत्थर ढो कर जिसने
आलिशान महल बनाए
तिनका तिनका जोड़ के अपनी
खुद वो झोपड़ पट्टी बनाए।
शिक्षा पाने की कोशिश
हरदम उसकी व्यर्थ ही जाए
नेता ने भी वोट मांगकर
झूठे सब्ज़ बाग़ दिखाए।
गर्मी सर्दी हो या बारिश
मेहनत कर वो रंग जमाए
घर में सूखी रोटी पे उसकी
कुत्ता भी है आँख गड़ाए।
रोटी कपडा औ ‘ मकान
तीनों से वंचित हो जाए
नेता के भाषण में हर दम
गरीबी रेखा में ही आए।
आठ पहर वो श्रम करके
घर में ख़ुशी से नाचे गाए
घर छोटा और दिल बड़ा
वो सच्चा मज़दूर कहलाए।
नीरजा मेहता
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