लाल रंग (कविता)
बापू ओ बापू!!
हाँ रे,बोल
क्या बात है??
बापू ,मुझे न ,हाँ बोल…
मुझे लाल रंग बड़ा अच्छा लगता है।
पता है क्यों?? हाँ बता,क्यों??
जब गाड़ी स्टेशन पर आती है तो
लाल झण्डी देने से गाड़ी
रुक जाती है ,मुसीबत को भाँपकर
दुर्घटना से बचाव किया जा सकता है,
सब लोग गाड़ी से उतरते हैं।
अपने घर की ओर चलते हैं,अपनों से मिलते हैं..
उनको खुश देखकर
मुझे बहुत सुकून मिलता है।।
पर ,उदास सा
एक बाबा, लाल रंग के
कपड़े पहनकर,धीरे-धीरे चलता है,
रूँआसा मुँह बनाकर ,बापू
उसका कोई नही है,दुनिया में!!!!
उसकी बूढ़ी हड्डियाँ …
काँपते हाथों से …लड़खड़ाते पाँवों से
सामान का बोझा उठाकर चलती हैं
चंद सिक्कों की आस में!!!
मैं नहीं पहनने दूँगा ,बापू तुमको लाल रंग!!!
नही पहनने दूँगा…
चाहे बेहद प्रिय है वह लाल रंग मुझे!!!!
…डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर
drpurnima01.dpr@gmail.com
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