अलविदा साल 2017 !!
मुक्तक
नफ़रतों के इस जहाँ को प्रेम की ताकीद देकर।
जा रहा यह साल फिर से इक नयी उम्मीद देकर।।
भूलकर बातें पुरानी नेह बंधन बांध लें हम
खुशनुमा लम्हें सजेंगे यूं हसीं सी दीद देकर।।
कविता
कशमकश रही
ताउम्र
देख ले तू बस
एक नज़र
सागर में उठती है
ज्यों वक्त बेवक्त
लहर
क्यों मोड़कर मुख
बरसा रहा
कहर
जाता हुआ यह साल
दिखा रहा
नव डगर
प्रेम का दिलों में
बसा लो
फिर से नगर
नववर्ष की आमद पे
नव आलोक का
पनपेगा शज़र
नव आलोक का
पनपेगा शज़र !!
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर
7087775713
Loading...
Comment:दिल को छूने बाली रचनायें
लाजवाब
गैरों के प्यार की कब्र पर अपने इश्क के फ़ूल खिलाने वाले ,
क्यों भूल जाते हैं कि फ़ूलों के संग काँटे भी हैं आने वाले।
संभल के रहना ए-दिल इस दुनिया के इज्जतदार लोगों से,
शराफत का नकाब पहने घूमते हैं दूसरों के घर जलाने वाले।