नाव सा मन( गज़ल)
ना जाने …किस किस…. कूल फिरे …
यह नादान ….नाव -सा मन ।।
लहरे…जाल… रेत… नमक
मछुआरे के….. गाँव -सा मन ।।
ठिठुरती इच्छाएँ.. जमा इर्द गिर्द
मद्धिम -मद्धिम अलाव सा मन ।।
कभी सिमटा ..कभी खुला रंग
मोर पंख की श्यामल छाँव सा मन ।।
पुरखे ….पीपल …. नदी …. नहर
दूर रह गये……गाँव सा मन ।।
गौतम कुमार सागर, वरिष्ठ प्रबंधक बैंक ऑफ बड़ौदा ,वडोदरा ( गुजरात)
लेखन कार्य :- विगत बीस वर्षों से हिन्दी साहित्य में लेखन. दो एकल काव्य संग्रह प्रकाशित . तीन साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित . विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . अखिल भारतीय स्तर पर ” निबंध , कहानी एवं आलेख लेखन ” में पुरस्कृत.
संपर्क :-102 , अक्षर पैराडाईज़् ,नारायणवाडी रेस्तूरेंट के बगल में,अटलादरा,वडोदरा (गुजरात) मो–7574820085
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मन की झाँकी अलग अंदाज ए ब्याँ…सुंदर..बधाई..गौतम जी