धड़कनें थम गई (गज़ल)
धड़कनें फिर थम गयीं क्यूँ सोचकर ये क्या हुआ।
आज तक भूले नहीं हम वक्त वो गुज़रा हुआ
क्या कहें हाल-ए-जिगर अब दास्तानें क्या लिखीं।
याद है हर एक लम्हां जो हुआ अच्छा हुआ।
भूल कर भी भूल पाये हम नहीं अब तक जिसे।
क्या तराना क्या फ़साना इश्क़ था महका हुआ।
तितलियों सी फड़फड़ाती आ पड़ी दामन तेरे।
चौदवीं का चाँद था तू जब ये दिल सजदा हुआ।
हर घड़ी रस्ता तेरा मैं आज भी ‘माही’ तकूँ ।
बढ़ गए ये फ़ासले क्यूँ क्यूँ भला ऐसा हुआ।
डॉ.प्रतिभा ‘माही’ इन्सां
(संस्थापिका)
भारतीय साहित्य संगम पंचकूला
(निदेशक)
पंजाब कला साहित्य अकादमी
प्रभारी (उत्तर भारत)
मंज़िल ग्रुप साहित्यिक मंच (भारत वर्ष)
मो० 8800117246
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डॉ.प्रतिभा जी ..हृदयस्पर्शी!!