एक रिश्ता ऐसा भी !
आज सुबह देर से आँख खुली, कमरे की खिड़की खोली ही थी कि धूप अंधेरे को ठेलते हुए अंदर आ गयी।सामने पलाश के पेड़ पर गहमागहमी का माहौल था।ऐसे लगा जैसे कोई बारात आई हो। बसंत ऋतु पलाश के पेड़ पर पूरी तरह मेहरबान लग रही थी । नये लाल सुर्ख परिधान पहने पलाश अपने रुप यौवन पर बार-बार इतरा रहा था। एक डाल पर तोता मैना का जोड़ा अपनी अपनी सुर्ख चोंच को बार-बार पलाश के फूलों पर रगड़ रहा था मानो कह रहा था कि देख लो, मेरी चोंच तुम्हारे रंग से ज्यादा सुर्ख है । इसी बीच एक गिलहरी भी कहीं से रोटी का टुकड़ा मुंँह में दबाये फूलों मे इधर-उधर छुपती फुदकती नजर आई। मधुमक्खियां भी मधु की तलाश में फूलो पर मंडरा रहीं थी ।
मैं हैरान था कि यह वही पलाश का पेड़ है जो साल के ज्यादातर दिन तन्हा अकेला रहता है अौर आज देखो सभी कितना अपनापन दिखा रहे हैं। हर कोई रिश्ता जोड़ रहा है— स्वार्थ का रिश्ता। थोड़ा गहराई से सोचा तो समझ आया कि संसार मे सिर्फ मांँ के रिश्ते को छोड़ कर हर रिश्ता स्वार्थ का ही तो है। प्रकृति यद्यपि मांँ स्वरुपा है ,इस लिये बस इस रिश्ते को ईश्वर ने नि:स्वार्थ बनाया। बाकी सारे रिश्ते हमने अपनी जरूरत के हिसाब से बनाये अौर परिभाषित किये।
ये बात अक्षरश:सत्य है कि हमें हर रिश्ते की कीमत चुकानी पड़ती है । तभी रिश्ता सुचारु रुप से चलता है। वह रिश्ता चाहे पति-पत्नी का हो , बहन-भाई का हो , दोस्ती का हो , या फिर प्यार का !सिर्फ मांँ ही अपने बच्चे पर नि;स्वार्थ वात्सल्य लुटाती है ,तभी शायद मांँ को भगवान का रुप माना गया।
अब देखिये न मैंनें भी पलाश के साथ थोड़ी देर के लिये एक रिश्ता जोड़ लिया –कलम और लेखन का!!
सत्य प्रकाश सिंह (सत्या सिंह)
मो. न, ०९९५६११८१९९
ग्राम – डंड़ियामऊ,पो.–रानीकटरा,
जिला– बाराबंकी(उ. प्र.)
बहुत सुंदर कहानी ।