सैनिक की अभिलाषा by राजकुमार सोनी
हम भारत के सच्चे सेवक सीमा के रखवाले हैं।
भारत माँ के चरणों में हम शीश चढ़ाने वाले हैं।
जंगल-जंगल खाक छानते मौत से आँख मिलाते हैं।
बर्फीले तूफानों में भी तनिक नही घबराते हैं।
सागर की लहरों से देखो अपना तो याराना है।
विष व्यालों के बीच में’ रहता अपना सदा ठिकाना है।
युद्ध भूमि के आँगन में हम शीश नहींझुकने देंगे।
जब तक तन में प्राण रहेंगे देश नही बँटने देंगे।
घाटी फिर आजाद करेंगे आतंकी शैतानों से।
केशर की क्यारी नाचेगी हिन्दुस्तानी गानों पे।
सीमा का विस्तार करेंगे वंदेमातरम गायेंगे।
बैरी की छाती पर चढ़कर हम झंडा फहरायेंगे।
जितने शीश गवाये हमने सबका बदला हम लेंगे।
फिर लाहौर कराची तक हम पूरा कब्जा कर लेंगे।
हाथ नहीं बाँधोगे मेरे ” राज “मुझे यह आशा है
कुछ घंटों की मोहलत दे दो इतनी सी अभिलाषा है।
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हार्दिक शुभकामनाएं
डॉ कविता भट्ट
लेखिका
श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड